Saturday, November 29, 2008

आतंकवाद और भारतीय राजनेता

मित्रों,
आज इस वक्त मुंबई में हुई आतंकी घटना के बाद मुझे अपने भारतीय होने पर कुछ ख़ास गर्व नही रहा। मैं उस भारत का नागरिक हूँ जहाँ मात्र १० आतंकवादी करीबन २०० निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतार देते हैं अरबों की संपत्ति को नष्ट कर देते हैं । आज हम आतंकियाँ को ख़तम कर के अपनी जीत का जश्न मना सकते हैं पर हमारी जीत खोकली है । हमें १० आतंकियों को मारने में तो १४ विशेष सुरक्षाकर्मियों की बलि लगानी पड़ी । निश्चित तौर पर हमारी पुलिस सेना और अन्य सुरक्षा संस्थायें हमारे लोकतान्त्रिक देश में हमारी निर्वाचित सरकारों के अधीन हैं। परन्तु क्या इन महत्वपूर्ण अंगों को संचालित करने वाले क्या इ स लायक हैं? मुझे तो लगता है आज भारत की सभी प्रमुख राजनितिक पार्टियां और उनके नेता सिर्फ़ एक उद्देश्य से काम कर रहे हैं - और वोह है की उन्हें किसी भी प्रकार से चुनाव जीतना है । मुझे नहीं लगता की कोई भी प्रमुख राजनितिक व्यक्ति छाहें वोह सत्ताशीन हों या विपक्ष हों सचमुछ में आम भारतीय के बारे में सोचता है। अगर एक तरफ़ सत्ता पार्टी पर आतंकियाँ पर नरमी बरतने का सही आरोप लगाया जाता है तो दूसरी तरफ़ बाकी राजनितिक दल भी अपने अपने स्वार्थ के हिसाब से आतंकवाद की परिभाषा करते हैं। करता कोई कुछ नहीं है । वर्तमान विपक्षी दल जब सत्ता में था तो उसके द्वारा हे हमारे पड़ोस में स्थित सबसे बड़े दुश्मन से दोस्ती की सबसे ज्यादा कोशिश करी गई। इसके दो नतीजे हुए पहला तो कारगिल और दूसरी बार तो हमारे दुश्मन मुल्क का लीडर मेरे शहर आगरा में हमें कश्मीर की आजादी का पाठ पढा गया और हम मेहमान नवाजी करते रह गए ।
मित्रों हमारे देश का मिडिया भी अपने स्वार्थ से परे नहीं है वोह कुछ न कुछ दिखाने और छापने की जिद में आतंकवाद और आतंकियों का गुणगान करते हैं उनका साथ देने वालों के बारे में सहानुभूति भरी कहानियाँ दिखाते हैं । आतंकियों की राह में खड़े पुलिस और सेना को हमेशा कटघरे में खड़ा करना ही उनका शगल है । हद तो तब हो गई जब आतंक को धर्म के आधार पे बांटा गया मिडिया ने एक नया शब्द हिंदू आतंकवाद इजाद कर दिया । अब मुंबई में हुए हाहाकार को वोह मुस्लिम आतंकवाद कहने से डरते हैं। मैं नहीं चाहता की आतंकवाद को धर्म से जोड़ा जायऐ । आतंक तो आतंक है आतंकी की बन्दूक की गोली मरने वालों का मज़हब नहीं पूछती। मरते तो सिर्फ़ बेगुनाह और मासूम नागरिक ।
दोस्तों हमें ऐसे राजनेताओं को बढ़ाना होगा जो क़ानून का राज कायम कर सकें आतंकियों और विशेष कर के उनकी हमारे मुल्क के भीतर से मदद करने वालों को क़ानून की ज़द में ला कर के बहुत तेज़ी से दण्डित करें । जब तक शाशन और उसके क़ानून का खौफ नहीं होगा यह सब नहीं रुकेगा ।
आइये उठें और इस देश के सोये राजनितिक दलों को जगायिएँ और अपने साथी नागरिकों को इस प्रकार मरने न देने की हम कसम खाएं .