Thursday, September 10, 2009

इशरत जहाँ का फर्जी एनकाउंटर और हमारा मीडिया.

मित्रों,
पिछले दो दिनों हमारे सामने आने वाली टी वी और अखबारों की ख़बरों में गुजरात के अहमदाबाद में २००४ में हुए एक एनकाउंटर को फर्जी साबित करने वाली सूचनाएँ मिली ।
अगर हम गौर से याद करें तो जिन लोगों के जेहन में २००४ जून की टी वी या अखबार की खबरें होंगी उन्हें तो यह याद होगा की उस समय यही मीडिया तस्वीर के उस पहलु को दिखा रहा था जिसको वोह आज झूठा और ग़लत बता रहा है। उस समय उनके हिसाब से यह लश्कर के आतंकवादियों के सफाए के बारे में एक कदम था और गुजरात सरकार और उनकी पुलिस का यह एक बहादुरी भरा कदम था।
परन्तु आज एक मजिस्ट्रेट की एक रिपोर्ट जिसके कुछ निहित स्वार्थ हो सकते हैं बहार आने के बाद हमारा मीडिया उस समय के तत्कालीन पोलिसव्वालों को एक जल्लाद और कातिल के रूप में पेश कर रहा है।
यहाँ मैं कुछ कहना चाहता हूँ की क्या पुलिसवालों की गलती इशरत और उसके आतंकी साथियों को निर्दोष बना देती है? क्या इस लड़की और उसके साथियों का कार्य राष्ट्रविरोधी नहीं थे ? हमारा मीडिया आज उस लड़की और उसके मित्र को एक शहीद का दर्जा डे रहा है। मैं मानता हूँ की पुलिस के आला अधिकारियों का इन दोषियों को सज़ा देने का तरीका ग़लत था परन्तु उनकी गलती इन लोगों संदेह के दायरे से बहार नहीं करता। यद्यपि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कुछ पत्रकारों ने जावेद के संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त पाया। और यह भी पता चला है की इशरत उस युवक के साथ एक निरंतर साथी और पार्टनर की तरह विभिन्न शहरों की यात्राएं करती थी। क्यों नहीं इशरत जहाँ का परिवार यह बताता की ऐसा क्या कारन और कार्य था जहाँ एक रुदिवादी मुस्लिम परिवार की लड़की अपने परिवार को बत्ताए बिना इधर उधर जाती थी। दूसरी ओर यहाँ हमें अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए यह भी सोचना चाहिए की क्या कारण थे की बाकी के दो युवकों की लाश लेने भी कोई नहीं आया? हो सकता है की पुलिस ने अपनी कहानी में उनके मन गड़ंत नाम रख दिए हों परन्तु उन दोनों के बारे में कोई भली बात भी सामने नहीं आई।
इसलिए मेरा इस मुल्क के जिम्मेदार मीडिया से अनुरोध है की कृपया करके आतंकियों और संदिग्ध चरित्र के लोगों को शहीद न बनाएं और पुलिस के ग़लत तरीकों को ज़रूर सामने ला कर एक जिम्मेदार नागरिक का फ़र्ज़ अदा करें.