Friday, July 23, 2010

मिड डे मील यानी शिक्षा का बंटाधार.


मित्रों,
हम सभी ने अखबारों और टी.वी पर मिड डे मील या मध्यान्ह भोजन के बारे में सुना होगा जो की भारत सरकार द्वारा मुफ्त में सभी सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त प्राथमिक और जूनियर स्कूलों में विद्यार्थियों को खिलाया जाता है ।
यह योजना भूतपूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव के शाशन काल में शुरू की गयी थी क्योंकि उस समय सरकारी गोदामों में जरूरत से ज्यादा गेहूं इकठ्ठा हो गया था और चूंकि वह हलकी क्वालिटी का होने के कारण एक्सपोर्ट नहीं हो सकता था , इसलिए यह योजना गेहूं के अतिरिक्त स्टॉक को ख़तम करने के लिए लागू हो गयी है।
आज की तारीख में यह योजना सरकारी शिक्षा विभाग की सबसे महत्वपूर्ण गतिविधि है। साथ ही यह इस विभाग के कर्मचारियों की जेबों को भरने का एक तरीका भी बन चुका है।
आज हालात ऐसे हैं की चाहें किसी विद्यालय में पढ़ाई हो न हो खाना ज़रूर बटेंगा, अध्यापकों और प्रधानाचार्यों पर कक्षा न लेने अथवा छात्रों को न पढ़ाने पर कार्यवाही तो नहीं होगी परन्तु यदि मिड डे मील नहीं वितरित हुआ तो कार्यवाही निश्चित है।
प्रतिदिन समाचार पत्रों में आप किसी न किसी विद्यालय में घटिया भोजन पअरोसे जाने की अथवा इस योजना के अनाज को बाज़ार में बेचे जाने की खबर तो ज़रूर पढ़ते होंगे , परन्तु कहीं भी यह नहीं बताया गया की इन विद्यालयों में शिक्षा का इस्तर कैसा है? विद्यार्थी कुछ सीख भी रहे है या नहीं? क्योंकि मास्टरजी ने यदि ठीक से मिड डे मील खिलवा दिया तो उनकी ड्यूटी पूरी। मुझे यह समझ में नहीं आता की जब सरकार रियायती दर पर खाद्यान उपलब्ध करा रही है या गरीब लोगों को मुफ्त अनाज बाँट रही है , तो फिर ऐसी योजना को क्यों चला रखा है?
इस मिड डे मील ने तो भ्रष्टाचार के कीर्तिमान बना दिए हैं और पढाई लिहाई ख़तम हो रही है। कई स्कूलों में तो छात्र सिर्फ भोजन करने आते हैं।
इसलिए सरकार को शिक्षा पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए और पौष्टिक आहार की उपलब्धता बढानी चाहिए परन्तु स्कूलों को सर्वप्रथम शिक्षा पर ही ध्यान देना चाहिए.