दोस्तों
ब्लॉग लिखने में हम सब को क्या आनंद आता है? इस बारे में कभी सोचता हूँ तो मुझे लगता कि क्या यह हमारी अभिव्यक्ति का एक माध्यम भर है? या फिर यह अपनेआप को पोपुलर बनाने का तरीका है?
या फिर साफ़ शब्दों में कहें तो क्या यह अपनी उन भावनाओं या भड़ास को निकालने का एक तरीका है जो हम सामान्यतः अपने दिमाग में सोचते हैं?
नमस्कार , मैं अश्वनी प्रकाश पालीवाल ताज नगरी आगरा का निवासी हूँ , ब्लॉग लिखना मेरे लिए मेरे अंतर्मन की अभिव्यक्ति का एक माध्यम है ,उम्मीद करता हूँ आप सभी धीरज से मेरी लेखनी पर ध्यान देंगे.
Thursday, December 4, 2008
लोकतंत्र को भीड़तंत्र बनने से रोकना होगा
मित्रों
अब मैं अपने पुराने ब्लॉग "लोकतंत्र बन गया भीड़तंत्र " पर हुई चर्चा को आगे बढाता हूँ।
मेरी नज़र में शायद आज हमारे देश में भीड़ या कहिये वोट बैंक की जो राजनीती शुरू हुई है वोह बहुत सारीसमस्याओं जैसे धार्मिक उन्माद ,जातिवाद ,तुष्टिकरण आदि की जनक है। इसका कारण हमारी चुनाव प्रणाली है । हमारे चुनावों में जो प्रत्याशी सबसे ज्यादा वोट पाता है वही चुना जाता है चाहें उसे पाँच प्रतिशत ही वोट क्यों न मिले हों। हमारे यहाँ इस प्रकार से चुने जाने को बहुमत से चुना जाना कहा जाता है। यह तो सही मायनों में बहुमत नहीं है। बहुमत तो ५१% या उससे अधिक मतों का पाना ही है।
आज राजनेता अपना सारा प्रयास किसी न किसी प्रकार का वोट बैंक बनाने में लगाते हैं। चाहें धर्म हो या जाती या क्षेत्र वाद हो नेता लोग कोई न कोई वर्ग के प्रति तुष्टिकरण की नीती अपनाते हैं और विभिन्न लोगों को अल्लग अलग वोट बैंक के रूप मैं हे देखते हैं।
इसका मेरी नज़र में इलाज़ यह हो सकता है की चुनाव में प्रत्याशियों के लिए निर्वाचित हने के लिए ५० प्रतिशित वोट पाना अनिवार्य हो। इस प्रकार राजनेता देश के सभी वर्गों के लोगों में अपनी पहचान बनाना चाहेंगे और शायद भीड़ की या वोट बैंक की राजनीती छोड़ सकें.
अब मैं अपने पुराने ब्लॉग "लोकतंत्र बन गया भीड़तंत्र " पर हुई चर्चा को आगे बढाता हूँ।
मेरी नज़र में शायद आज हमारे देश में भीड़ या कहिये वोट बैंक की जो राजनीती शुरू हुई है वोह बहुत सारीसमस्याओं जैसे धार्मिक उन्माद ,जातिवाद ,तुष्टिकरण आदि की जनक है। इसका कारण हमारी चुनाव प्रणाली है । हमारे चुनावों में जो प्रत्याशी सबसे ज्यादा वोट पाता है वही चुना जाता है चाहें उसे पाँच प्रतिशत ही वोट क्यों न मिले हों। हमारे यहाँ इस प्रकार से चुने जाने को बहुमत से चुना जाना कहा जाता है। यह तो सही मायनों में बहुमत नहीं है। बहुमत तो ५१% या उससे अधिक मतों का पाना ही है।
आज राजनेता अपना सारा प्रयास किसी न किसी प्रकार का वोट बैंक बनाने में लगाते हैं। चाहें धर्म हो या जाती या क्षेत्र वाद हो नेता लोग कोई न कोई वर्ग के प्रति तुष्टिकरण की नीती अपनाते हैं और विभिन्न लोगों को अल्लग अलग वोट बैंक के रूप मैं हे देखते हैं।
इसका मेरी नज़र में इलाज़ यह हो सकता है की चुनाव में प्रत्याशियों के लिए निर्वाचित हने के लिए ५० प्रतिशित वोट पाना अनिवार्य हो। इस प्रकार राजनेता देश के सभी वर्गों के लोगों में अपनी पहचान बनाना चाहेंगे और शायद भीड़ की या वोट बैंक की राजनीती छोड़ सकें.
Monday, December 1, 2008
मुंबई में आतंकवाद और मेरा शहर आगरा
दोस्तों
आज मैं अपने शहर आगरा का हाल मुंबई के आतंकवादी हमले के बाद बताऊंगा । यहाँ भी काफ़ी कुछ देश के अन्य शहरों जैसा हाल है यहाँ का आम शहरी धर्म और अन्य भेदभाव के बावजूद भी मुंबई का दर्द और दहशत महसूस कर रहा है । बड़े ग़ज़ब की बात जो मैंने महसूस करी है वोह यह है की शिक्षित या अशिक्षित अमीर और गरीब छोटे और बड़े सभी ने कहीं न कहीं इस घटना के बारे में मंथन या विचार विमर्ष तो ज़रूर किया है, और कुछ नहीं तो सभी के मन में जिज्ञासा तो है ही। शायद यह भी संचार क्रांति का शायद एक सकारात्मक असर है।
परन्तु मेरे शहर में भी भी काफ़ी रंगे सियार हैं। इनमें सर्वप्रथम नेता और तताकथित समाजसेवी हैं। नेताओं को तो हमेशा की तरह बयानबाजी और परस्पर आलोचना का एक और मौका मिल गया और उनके लिए तो यह अखबार में नाम छपवाने और लोकल न्यूज़ चैनल में छेहरा दिखाने का मौका मिल गया है । लेकिन एक समाज सेवी संस्था तो काफ़ी उत्साहित हो गई। उसने मुंबई के घायलों के लिए एक रक्त दान शिविर आयोजित किया, जो की एक नितांत अच्छी बात है । परन्तु सोचिये क्या मुंबई के ३००-३५० घायलों के लिए मुंबई में ही रक्त उपलब्ध नहीं हो पायेगा ,या फिर किस प्रकार यह्हान हुए रक्तदान को वोह वहाँ पहुंचाएंगे। अतः यह तो सिर्फ़ एक पब्लिसिटी का तरीका है । तो देखिये सभी लोगों के अपने अपने स्वार्थ और मतलब ।
कोई भी इंसान कितनी भी मुसीबत में हो परन्तु संवेदनाहीन लोगों को कोई फरक नहीं पड़ता।
परन्तु शायद आगरा पुलिस ने संभावित मुसुबत को भांपा है और यहाँ के आला अधिकारियों ने विशेष सुरक्षा मुहीम स्वयं चलाई। परन्तु निचले स्स्तर के पुलिस कर्मियों को यहाँ भी चेक्किंग के नाम पर वसूली का मौका मिल गया, और निरीह नागरिक तो आतंकवादी साबित होने के डर से कुछ भी दे देगा ।
और देखो भाई हम जैसे नए नए ब्लॉगर को भी अपनी भावनाएं या कहिये भडास निकालने का एक और मौका मिल गया.
आज मैं अपने शहर आगरा का हाल मुंबई के आतंकवादी हमले के बाद बताऊंगा । यहाँ भी काफ़ी कुछ देश के अन्य शहरों जैसा हाल है यहाँ का आम शहरी धर्म और अन्य भेदभाव के बावजूद भी मुंबई का दर्द और दहशत महसूस कर रहा है । बड़े ग़ज़ब की बात जो मैंने महसूस करी है वोह यह है की शिक्षित या अशिक्षित अमीर और गरीब छोटे और बड़े सभी ने कहीं न कहीं इस घटना के बारे में मंथन या विचार विमर्ष तो ज़रूर किया है, और कुछ नहीं तो सभी के मन में जिज्ञासा तो है ही। शायद यह भी संचार क्रांति का शायद एक सकारात्मक असर है।
परन्तु मेरे शहर में भी भी काफ़ी रंगे सियार हैं। इनमें सर्वप्रथम नेता और तताकथित समाजसेवी हैं। नेताओं को तो हमेशा की तरह बयानबाजी और परस्पर आलोचना का एक और मौका मिल गया और उनके लिए तो यह अखबार में नाम छपवाने और लोकल न्यूज़ चैनल में छेहरा दिखाने का मौका मिल गया है । लेकिन एक समाज सेवी संस्था तो काफ़ी उत्साहित हो गई। उसने मुंबई के घायलों के लिए एक रक्त दान शिविर आयोजित किया, जो की एक नितांत अच्छी बात है । परन्तु सोचिये क्या मुंबई के ३००-३५० घायलों के लिए मुंबई में ही रक्त उपलब्ध नहीं हो पायेगा ,या फिर किस प्रकार यह्हान हुए रक्तदान को वोह वहाँ पहुंचाएंगे। अतः यह तो सिर्फ़ एक पब्लिसिटी का तरीका है । तो देखिये सभी लोगों के अपने अपने स्वार्थ और मतलब ।
कोई भी इंसान कितनी भी मुसीबत में हो परन्तु संवेदनाहीन लोगों को कोई फरक नहीं पड़ता।
परन्तु शायद आगरा पुलिस ने संभावित मुसुबत को भांपा है और यहाँ के आला अधिकारियों ने विशेष सुरक्षा मुहीम स्वयं चलाई। परन्तु निचले स्स्तर के पुलिस कर्मियों को यहाँ भी चेक्किंग के नाम पर वसूली का मौका मिल गया, और निरीह नागरिक तो आतंकवादी साबित होने के डर से कुछ भी दे देगा ।
और देखो भाई हम जैसे नए नए ब्लॉगर को भी अपनी भावनाएं या कहिये भडास निकालने का एक और मौका मिल गया.
Sunday, November 30, 2008
मेरा देश रामभरोसे
दोस्तों
आप सभी से मैं एक सवाल पूछता हूँ हमारे मुल्क को कौन चला रहा है इसे दिशा कौन डे रहा है? क्या हमारे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री या आदरणीय मैडम या हमारे सेना के तीनों अंगों के प्रमुख या कैबिनेट सचिव या कोई और। दोस्तों मुझे तो लग रहा है की शायद राम या अल्लाह या जेसुस या कोई ऐसी शक्ति इन सब को चला रही है। मेरा मतलब है हम अगर रामभरोसे होते तो शायद हमारे मुल्क में आतंकवाद बाढ़ भूकंप सूखा दंगे गन्दी राजनीती इत्यादि अन्य मुसीबतें जो आज पढ़े लिखे भारतीय के मानस पटल पर सबसे ज्यादा असर छोड़ रही हैं , शायद होती हे नहीं।
क्योंकि हमारा प्रजातंत्र जो मेरी नज़र में भीड़तंत्र ही है आज की तारीख में निक्कमे नकारा और महा भ्रष्ट नेत्रत्वा को हे बढ़ा रहहा है। अतः दोस्तों आप सभी से अनुरोध है की अपने अपने मत के अनुसार राम या अन्य किसी भी पूज्य शक्ति का आह्व्हान करें जो इस देश की भविष्य संभाल कर के हम लोगों के जीवन को एक नई दिशा दे।
क्योंकि एक आम भारतीय में न तो हिम्मत है और न ही शक्ति है स्वयं आगे आ कर के कुछ कर दिखाने की ।
आप सभी से मैं एक सवाल पूछता हूँ हमारे मुल्क को कौन चला रहा है इसे दिशा कौन डे रहा है? क्या हमारे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री या आदरणीय मैडम या हमारे सेना के तीनों अंगों के प्रमुख या कैबिनेट सचिव या कोई और। दोस्तों मुझे तो लग रहा है की शायद राम या अल्लाह या जेसुस या कोई ऐसी शक्ति इन सब को चला रही है। मेरा मतलब है हम अगर रामभरोसे होते तो शायद हमारे मुल्क में आतंकवाद बाढ़ भूकंप सूखा दंगे गन्दी राजनीती इत्यादि अन्य मुसीबतें जो आज पढ़े लिखे भारतीय के मानस पटल पर सबसे ज्यादा असर छोड़ रही हैं , शायद होती हे नहीं।
क्योंकि हमारा प्रजातंत्र जो मेरी नज़र में भीड़तंत्र ही है आज की तारीख में निक्कमे नकारा और महा भ्रष्ट नेत्रत्वा को हे बढ़ा रहहा है। अतः दोस्तों आप सभी से अनुरोध है की अपने अपने मत के अनुसार राम या अन्य किसी भी पूज्य शक्ति का आह्व्हान करें जो इस देश की भविष्य संभाल कर के हम लोगों के जीवन को एक नई दिशा दे।
क्योंकि एक आम भारतीय में न तो हिम्मत है और न ही शक्ति है स्वयं आगे आ कर के कुछ कर दिखाने की ।
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