दोस्तों
आज मैं अपने शहर आगरा का हाल मुंबई के आतंकवादी हमले के बाद बताऊंगा । यहाँ भी काफ़ी कुछ देश के अन्य शहरों जैसा हाल है यहाँ का आम शहरी धर्म और अन्य भेदभाव के बावजूद भी मुंबई का दर्द और दहशत महसूस कर रहा है । बड़े ग़ज़ब की बात जो मैंने महसूस करी है वोह यह है की शिक्षित या अशिक्षित अमीर और गरीब छोटे और बड़े सभी ने कहीं न कहीं इस घटना के बारे में मंथन या विचार विमर्ष तो ज़रूर किया है, और कुछ नहीं तो सभी के मन में जिज्ञासा तो है ही। शायद यह भी संचार क्रांति का शायद एक सकारात्मक असर है।
परन्तु मेरे शहर में भी भी काफ़ी रंगे सियार हैं। इनमें सर्वप्रथम नेता और तताकथित समाजसेवी हैं। नेताओं को तो हमेशा की तरह बयानबाजी और परस्पर आलोचना का एक और मौका मिल गया और उनके लिए तो यह अखबार में नाम छपवाने और लोकल न्यूज़ चैनल में छेहरा दिखाने का मौका मिल गया है । लेकिन एक समाज सेवी संस्था तो काफ़ी उत्साहित हो गई। उसने मुंबई के घायलों के लिए एक रक्त दान शिविर आयोजित किया, जो की एक नितांत अच्छी बात है । परन्तु सोचिये क्या मुंबई के ३००-३५० घायलों के लिए मुंबई में ही रक्त उपलब्ध नहीं हो पायेगा ,या फिर किस प्रकार यह्हान हुए रक्तदान को वोह वहाँ पहुंचाएंगे। अतः यह तो सिर्फ़ एक पब्लिसिटी का तरीका है । तो देखिये सभी लोगों के अपने अपने स्वार्थ और मतलब ।
कोई भी इंसान कितनी भी मुसीबत में हो परन्तु संवेदनाहीन लोगों को कोई फरक नहीं पड़ता।
परन्तु शायद आगरा पुलिस ने संभावित मुसुबत को भांपा है और यहाँ के आला अधिकारियों ने विशेष सुरक्षा मुहीम स्वयं चलाई। परन्तु निचले स्स्तर के पुलिस कर्मियों को यहाँ भी चेक्किंग के नाम पर वसूली का मौका मिल गया, और निरीह नागरिक तो आतंकवादी साबित होने के डर से कुछ भी दे देगा ।
और देखो भाई हम जैसे नए नए ब्लॉगर को भी अपनी भावनाएं या कहिये भडास निकालने का एक और मौका मिल गया.
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