मित्रों और हिन्दी ब्लॉग्गिंग की दुनिया के साथियों ,
क्या यह एक प्रकार का भाषाई भेदभाव नहीं है कि गूगल जो कि ब्लॉगर.कॉम की मातृ संस्था है , वोह मेरे जैसे ब्लॉग पर सिर्फ़ इसीलिए विज्ञापन नहीं देती क्योंकि हम हिन्दी भाषा में ब्लॉग लिख रहे हैं। मित्रों मेरी पूरी शिक्षा अंग्रेज़ी माध्यम से हुई और अंग्रेज़ी पर मेरा अच्छाकमांड है परन्तु ब्लॉग की शुरुआत करते समय मैंने सोचा की जब मेरे मन में खयालात और मेरे मन के विचारों को उदगम मेरे मष्तिष्क में हिन्दी में होता है तो क्यों न मैं हिन्दी में ही लिखूं। वैसे तो मैं अपने आप को कोई बहुत प्रतिभाशाली ब्लॉगर नहीं मानता परन्तु गूगल द्वारा मेरे ब्लॉग पर सिर्फ़ इसीलिए विज्ञापन देना मना कर दिया गया क्योंकि मेरी भाषा हिन्दी है मेरी थोड़ी सी प्रतिभा और लेखी और मेरी मात्रभाषा का असम्मान है। यदि किसी अन्य कारण से वोह मना करते जैसे की मेरे ब्लॉग की पाठक संख्या कम है इत्यादि तो मैं समझ सकता परन्तु सिर्फ़ इसलिए की हमारा ब्लॉग हिन्दी में है यह बहाना तो हम हिंदीभाषियों की शान के ख़िलाफ़ है। मैं बड़ी उत्सुकता से आप सभी की प्रतिक्रया का इंतज़ार करूंगा.
नमस्कार , मैं अश्वनी प्रकाश पालीवाल ताज नगरी आगरा का निवासी हूँ , ब्लॉग लिखना मेरे लिए मेरे अंतर्मन की अभिव्यक्ति का एक माध्यम है ,उम्मीद करता हूँ आप सभी धीरज से मेरी लेखनी पर ध्यान देंगे.
Friday, December 4, 2009
Tuesday, December 1, 2009
चलो सड़क जम करते हैं .
मित्रों
हम सभी लोग जो अपने अपने प्रान्तों के क्षेत्रीय अखबार पढ़ते हैं , प्रतिदिन की ख़बरों में अपने -अपने क्षेत्र में लगने वाले रोड जामकी ख़बरको प्रमुखता से पाते हैं। अब तो कुछ भी हो जाए रोड जाम करने का उपाय भी बढ़िया है। कोई दुर्घटना हो जाए तो जाम आवश्यक है परन्तु साथ ही में बिजली या पानी न आने पर , किसी लड़के द्वारा किसी लड़की को भगाए जाने पर, किसी भी सरकारी फैसले का विरोध करने के लिए, स्कूल या कॉलेज में किसी भी समस्या के होने पर, किसी भी प्रतिष्ठान में वेतन बढ़ाने के लिए , और कल के समाचार पत्र के अनुसार भैंस के ,talaab में डूब के मर जाने पर , hospital में ilaaz के दौरान मर जाने पर , gaaon में baarish या toofan या सूखे से फसल ख़राब हो जाने पर , किसी neta की giraftaari या usaki मृत्यु हो जाने पर ,ityaadi ,ityaadi ityaadi । चलिए अब apani बातचीत को alpviraam detaa हूँ पुनः एक बार फिर आपके सामने अन्य विषय ज़रूर प्रस्तुत करूंगा.
हम सभी लोग जो अपने अपने प्रान्तों के क्षेत्रीय अखबार पढ़ते हैं , प्रतिदिन की ख़बरों में अपने -अपने क्षेत्र में लगने वाले रोड जामकी ख़बरको प्रमुखता से पाते हैं। अब तो कुछ भी हो जाए रोड जाम करने का उपाय भी बढ़िया है। कोई दुर्घटना हो जाए तो जाम आवश्यक है परन्तु साथ ही में बिजली या पानी न आने पर , किसी लड़के द्वारा किसी लड़की को भगाए जाने पर, किसी भी सरकारी फैसले का विरोध करने के लिए, स्कूल या कॉलेज में किसी भी समस्या के होने पर, किसी भी प्रतिष्ठान में वेतन बढ़ाने के लिए , और कल के समाचार पत्र के अनुसार भैंस के ,talaab में डूब के मर जाने पर , hospital में ilaaz के दौरान मर जाने पर , gaaon में baarish या toofan या सूखे से फसल ख़राब हो जाने पर , किसी neta की giraftaari या usaki मृत्यु हो जाने पर ,ityaadi ,ityaadi ityaadi । चलिए अब apani बातचीत को alpviraam detaa हूँ पुनः एक बार फिर आपके सामने अन्य विषय ज़रूर प्रस्तुत करूंगा.
Sunday, November 15, 2009
ब्लॉग लिखने के मायने
मित्रों ब्लॉग्गिंग की दुनिया अब एक नया मुकाम हासिल कर रही है और निरंतर बढ़ रही है। मुझे ब्लॉग्गिंग का इतिहास तो पता नहीं लेकिन यह तो पता है की यह एक शिक्षित व्यक्ति की भावनाओं को व्यक्त करने का सबसे अछा माध्यम है.
Thursday, October 15, 2009
Monday, September 28, 2009
नक्सलवाद और माओवाद
मेरे अनुसार प्रत्येक भारतीय को नकसली हिंसा की निंदा और भर्त्सना करनी चाहिए। यह हमारे देश के लिए आतंकवाद से भी बड़ा ख़तरा है.
Thursday, September 10, 2009
इशरत जहाँ का फर्जी एनकाउंटर और हमारा मीडिया.
मित्रों,
पिछले दो दिनों हमारे सामने आने वाली टी वी और अखबारों की ख़बरों में गुजरात के अहमदाबाद में २००४ में हुए एक एनकाउंटर को फर्जी साबित करने वाली सूचनाएँ मिली ।
अगर हम गौर से याद करें तो जिन लोगों के जेहन में २००४ जून की टी वी या अखबार की खबरें होंगी उन्हें तो यह याद होगा की उस समय यही मीडिया तस्वीर के उस पहलु को दिखा रहा था जिसको वोह आज झूठा और ग़लत बता रहा है। उस समय उनके हिसाब से यह लश्कर के आतंकवादियों के सफाए के बारे में एक कदम था और गुजरात सरकार और उनकी पुलिस का यह एक बहादुरी भरा कदम था।
परन्तु आज एक मजिस्ट्रेट की एक रिपोर्ट जिसके कुछ निहित स्वार्थ हो सकते हैं बहार आने के बाद हमारा मीडिया उस समय के तत्कालीन पोलिसव्वालों को एक जल्लाद और कातिल के रूप में पेश कर रहा है।
यहाँ मैं कुछ कहना चाहता हूँ की क्या पुलिसवालों की गलती इशरत और उसके आतंकी साथियों को निर्दोष बना देती है? क्या इस लड़की और उसके साथियों का कार्य राष्ट्रविरोधी नहीं थे ? हमारा मीडिया आज उस लड़की और उसके मित्र को एक शहीद का दर्जा डे रहा है। मैं मानता हूँ की पुलिस के आला अधिकारियों का इन दोषियों को सज़ा देने का तरीका ग़लत था परन्तु उनकी गलती इन लोगों संदेह के दायरे से बहार नहीं करता। यद्यपि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कुछ पत्रकारों ने जावेद के संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त पाया। और यह भी पता चला है की इशरत उस युवक के साथ एक निरंतर साथी और पार्टनर की तरह विभिन्न शहरों की यात्राएं करती थी। क्यों नहीं इशरत जहाँ का परिवार यह बताता की ऐसा क्या कारन और कार्य था जहाँ एक रुदिवादी मुस्लिम परिवार की लड़की अपने परिवार को बत्ताए बिना इधर उधर जाती थी। दूसरी ओर यहाँ हमें अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए यह भी सोचना चाहिए की क्या कारण थे की बाकी के दो युवकों की लाश लेने भी कोई नहीं आया? हो सकता है की पुलिस ने अपनी कहानी में उनके मन गड़ंत नाम रख दिए हों परन्तु उन दोनों के बारे में कोई भली बात भी सामने नहीं आई।
इसलिए मेरा इस मुल्क के जिम्मेदार मीडिया से अनुरोध है की कृपया करके आतंकियों और संदिग्ध चरित्र के लोगों को शहीद न बनाएं और पुलिस के ग़लत तरीकों को ज़रूर सामने ला कर एक जिम्मेदार नागरिक का फ़र्ज़ अदा करें.
पिछले दो दिनों हमारे सामने आने वाली टी वी और अखबारों की ख़बरों में गुजरात के अहमदाबाद में २००४ में हुए एक एनकाउंटर को फर्जी साबित करने वाली सूचनाएँ मिली ।
अगर हम गौर से याद करें तो जिन लोगों के जेहन में २००४ जून की टी वी या अखबार की खबरें होंगी उन्हें तो यह याद होगा की उस समय यही मीडिया तस्वीर के उस पहलु को दिखा रहा था जिसको वोह आज झूठा और ग़लत बता रहा है। उस समय उनके हिसाब से यह लश्कर के आतंकवादियों के सफाए के बारे में एक कदम था और गुजरात सरकार और उनकी पुलिस का यह एक बहादुरी भरा कदम था।
परन्तु आज एक मजिस्ट्रेट की एक रिपोर्ट जिसके कुछ निहित स्वार्थ हो सकते हैं बहार आने के बाद हमारा मीडिया उस समय के तत्कालीन पोलिसव्वालों को एक जल्लाद और कातिल के रूप में पेश कर रहा है।
यहाँ मैं कुछ कहना चाहता हूँ की क्या पुलिसवालों की गलती इशरत और उसके आतंकी साथियों को निर्दोष बना देती है? क्या इस लड़की और उसके साथियों का कार्य राष्ट्रविरोधी नहीं थे ? हमारा मीडिया आज उस लड़की और उसके मित्र को एक शहीद का दर्जा डे रहा है। मैं मानता हूँ की पुलिस के आला अधिकारियों का इन दोषियों को सज़ा देने का तरीका ग़लत था परन्तु उनकी गलती इन लोगों संदेह के दायरे से बहार नहीं करता। यद्यपि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कुछ पत्रकारों ने जावेद के संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त पाया। और यह भी पता चला है की इशरत उस युवक के साथ एक निरंतर साथी और पार्टनर की तरह विभिन्न शहरों की यात्राएं करती थी। क्यों नहीं इशरत जहाँ का परिवार यह बताता की ऐसा क्या कारन और कार्य था जहाँ एक रुदिवादी मुस्लिम परिवार की लड़की अपने परिवार को बत्ताए बिना इधर उधर जाती थी। दूसरी ओर यहाँ हमें अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए यह भी सोचना चाहिए की क्या कारण थे की बाकी के दो युवकों की लाश लेने भी कोई नहीं आया? हो सकता है की पुलिस ने अपनी कहानी में उनके मन गड़ंत नाम रख दिए हों परन्तु उन दोनों के बारे में कोई भली बात भी सामने नहीं आई।
इसलिए मेरा इस मुल्क के जिम्मेदार मीडिया से अनुरोध है की कृपया करके आतंकियों और संदिग्ध चरित्र के लोगों को शहीद न बनाएं और पुलिस के ग़लत तरीकों को ज़रूर सामने ला कर एक जिम्मेदार नागरिक का फ़र्ज़ अदा करें.
Wednesday, August 12, 2009
स्वाइन फ्लू का डर और हम तथा हमारी सरकार और मीडिया
मित्रों,
इन दिनों सभी भारतवासी अपने अन्दर इस नए रोग के हमले को लेकर चिंता पाले हुए हैं । मुझे लगता है की इस परेशानी का मुकाबला करने से ज्यादा हमारा सरकारी तंत्र रोज़ आम जनता को भ्रमित कर रहा है। मुझे लगता है हमारे मुल्क का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तो इस समस्या में छिपी व्यापारिक संभावनाओं को तलाश रहा है। उनके लिए तो सनसनीखेज बातों को कह कर और भ्रम फैला कर अपनी टी आर पी बढ़ाना ही इसका इलाज़ है। दोस्तों घबराने और भ्रम फैलाने से या फिर सरकार को कोसने से कुछ नहीं होगा। जिन सरकारी स्वस्थ केन्द्रों पर साधारण इलाज़ की सुविधाएं भी नहीं हैं वहाँ यह सब कैसे होगा?
इन दिनों सभी भारतवासी अपने अन्दर इस नए रोग के हमले को लेकर चिंता पाले हुए हैं । मुझे लगता है की इस परेशानी का मुकाबला करने से ज्यादा हमारा सरकारी तंत्र रोज़ आम जनता को भ्रमित कर रहा है। मुझे लगता है हमारे मुल्क का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तो इस समस्या में छिपी व्यापारिक संभावनाओं को तलाश रहा है। उनके लिए तो सनसनीखेज बातों को कह कर और भ्रम फैला कर अपनी टी आर पी बढ़ाना ही इसका इलाज़ है। दोस्तों घबराने और भ्रम फैलाने से या फिर सरकार को कोसने से कुछ नहीं होगा। जिन सरकारी स्वस्थ केन्द्रों पर साधारण इलाज़ की सुविधाएं भी नहीं हैं वहाँ यह सब कैसे होगा?
Monday, August 3, 2009
मुझे गुस्सा क्यों आता है? मैं इसे कैसे काबू करुँ ?
मित्रों,
पिछले दिनों से मैं अपने क्रोध को काबू करने की कोशिश करता हूँ ,परन्तु बहुत छोटी -छोटी बातों पर मैं अपने पर काबू नहीं रख पाता जबकि मैं ऐसे बहुत से मसलों पर जो कि महत्वपूर्ण होते हैं या ज्यादा बड़े हैं उन पर मैं अपने आप पर काबू कर के अक्सर शांत दिमाग से काम कर लेता हूँ तो फिर छोटे मोटे मसलों पर मैं क्यों नहीं संयमित नहीं रह सकता हूँ ?
मित्रों सलाह दीजिये कि क्या करा जाए ।
पिछले दिनों से मैं अपने क्रोध को काबू करने की कोशिश करता हूँ ,परन्तु बहुत छोटी -छोटी बातों पर मैं अपने पर काबू नहीं रख पाता जबकि मैं ऐसे बहुत से मसलों पर जो कि महत्वपूर्ण होते हैं या ज्यादा बड़े हैं उन पर मैं अपने आप पर काबू कर के अक्सर शांत दिमाग से काम कर लेता हूँ तो फिर छोटे मोटे मसलों पर मैं क्यों नहीं संयमित नहीं रह सकता हूँ ?
मित्रों सलाह दीजिये कि क्या करा जाए ।
Thursday, July 16, 2009
नक्सलवाद का नासूर
मित्रों,
पिछले दिनों मीडिया के सभी प्रतिरूपों में कई सारी नक्सलवादी घटनाओं के बारे में सभी ने पढा होगा । मुझे तो यह सब पढ़ कर हमारे देश के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती मालूम पड़ती है। मित्रों हमारे देश में अब तक जो भी आतंकवादी या उग्रवादी आन्दोलन हुए वोह मुख्यतः कुछ क्षेत्रों में हे सीमित रहा और इन हिंसक आन्दोलनों के पीछे विदेशी मदद का भी बहुत योगदान था। हमारी सरकार भी काफ़ी हद तक इन हिंसक आन्दोलनों को काबू कर पायी है । परन्तु अब नक्सलवाद का ज़हर धीमे धीमे पूरे मुल्क में फ़ैल रहा है , यह बहुत गंभीर समस्या है। एक ओरे यदि इसे पूरी ताक़त से कुचलने की आव्यश्यक्ता है , तो दूसरी ओर इसकी जड़ में भी पहुँचने की आव्यश्यक्ता है। मेरी समझ में इन आन्दोलनों को जन समर्थन का कारण आम जनता के हमारी शाशन व्यवस्था में ख़तम हो रहे विश्वास में है। दिन प्रतिदिन आम आदमी का क़ानून से भरोसा उठ रहा है, क्योंकि राजनेताओं और नौकरशाहों ने हमारे देश के सम्विधान और क़ानून को अपनी सुविधा से तोड़ना और मरोड़ना शुरू कर दिया है। मैं समझता हूँ शाशन और सत्ता के शीर्ष पद पर बैठे लोगों को जाग जाना चाहिए क्योंकि यदि इस प्रकार के हिंसक नक्सलवादी आन्दोलनों का जन समर्थन बढ़ गया तो उन्हें और उनके परिवारों को सबसे ज्यादा कष्ट उठाना पड़ेगा , क्योंकि आम जनता तो सारे कष्ट किसी न किसी तरह से बर्दाश्त कर लेगी पर इस कुलीन वर्ग का काया होगा?
अभी भी वक़्त है राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानते हुए जनता के लिए , जनता के द्वारा और जनता का राज कायम करें और भारत को आगे ले जाएँ.
पिछले दिनों मीडिया के सभी प्रतिरूपों में कई सारी नक्सलवादी घटनाओं के बारे में सभी ने पढा होगा । मुझे तो यह सब पढ़ कर हमारे देश के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती मालूम पड़ती है। मित्रों हमारे देश में अब तक जो भी आतंकवादी या उग्रवादी आन्दोलन हुए वोह मुख्यतः कुछ क्षेत्रों में हे सीमित रहा और इन हिंसक आन्दोलनों के पीछे विदेशी मदद का भी बहुत योगदान था। हमारी सरकार भी काफ़ी हद तक इन हिंसक आन्दोलनों को काबू कर पायी है । परन्तु अब नक्सलवाद का ज़हर धीमे धीमे पूरे मुल्क में फ़ैल रहा है , यह बहुत गंभीर समस्या है। एक ओरे यदि इसे पूरी ताक़त से कुचलने की आव्यश्यक्ता है , तो दूसरी ओर इसकी जड़ में भी पहुँचने की आव्यश्यक्ता है। मेरी समझ में इन आन्दोलनों को जन समर्थन का कारण आम जनता के हमारी शाशन व्यवस्था में ख़तम हो रहे विश्वास में है। दिन प्रतिदिन आम आदमी का क़ानून से भरोसा उठ रहा है, क्योंकि राजनेताओं और नौकरशाहों ने हमारे देश के सम्विधान और क़ानून को अपनी सुविधा से तोड़ना और मरोड़ना शुरू कर दिया है। मैं समझता हूँ शाशन और सत्ता के शीर्ष पद पर बैठे लोगों को जाग जाना चाहिए क्योंकि यदि इस प्रकार के हिंसक नक्सलवादी आन्दोलनों का जन समर्थन बढ़ गया तो उन्हें और उनके परिवारों को सबसे ज्यादा कष्ट उठाना पड़ेगा , क्योंकि आम जनता तो सारे कष्ट किसी न किसी तरह से बर्दाश्त कर लेगी पर इस कुलीन वर्ग का काया होगा?
अभी भी वक़्त है राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानते हुए जनता के लिए , जनता के द्वारा और जनता का राज कायम करें और भारत को आगे ले जाएँ.
Sunday, June 28, 2009
माइकल जैक्सन निः संकोच सबसे बड़ा पॉप सितारा
मित्रों,
माइकल जैक्सन से मेरा पहला परिचय १४ वर्ष की उम्र में अपने कॉलेज जाते रिश्तेदार के कमरे में लगे उनके आदमकद पोस्टर से हुआ। तब तक मेरी इंग्लिश गानों की जानकारी मेरे स्कूल की कुछ सुबह की प्रार्थनाओं तक ही सिमित थी। अपने उन भ्राताश्री से ही मैंने पहली बार उस महान कलाकार के बारे में जाना और उनके इम्पोर्टेड टू-इन-वन पर उनका गाना बीट इट सुना जिसकी ध्वनि आज भी मेरे दिमाग में है। मैं न तो कोई विशेष संगीत प्रेमी हूँ और न ही मेरी रूचि इंग्लिश पॉप गानों में ज्यादा रही परन्तु मैं हमेशा अपने कॉलेज के दिनों में माइकल जैक्सन के एल्बम के कैसेट जरूर खरीदता, और जैसे ही मुझे कॉलेज के दौरान स्वतंत्र रूप से कमरा ले कर रहने का अवसर मिला तो मैंने उस कमरे की बालकनी के दरवाजे पर अपने अग्रज जैसा ही माइकल का आदमकद पोस्टर लगाया , जिसके कारण मेरी मित्र मंडली में मेरे घर की एक अलग चर्चा कई दिनों तक हुई।
कॉलेज के दौरान ही हमारे शहर में केबल टी.वि के माध्यम से ऍम टी.वि का आगाज़ हुआ और मुझे उनके विडियो देखने का सौभाग्य हुआ। परन्तु न जाने कब जीवन की भाग दौड़ में माइकल का संगीत पीछे छूट गया और केबल पर आने वाले म्यूजिक चैनल्स का देशीकरण होने से इंग्लिश पॉप संगीत का आकर्षण भी छूट गया। परन्तु इस महान मनोरंजन करता की मृत्यु ने मेरे मन में पुनः उनकी याद ताज़ा कर दी और मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ की उनकी आत्मा को शान्ति मिले।
माइकल जैक्सन से मेरा पहला परिचय १४ वर्ष की उम्र में अपने कॉलेज जाते रिश्तेदार के कमरे में लगे उनके आदमकद पोस्टर से हुआ। तब तक मेरी इंग्लिश गानों की जानकारी मेरे स्कूल की कुछ सुबह की प्रार्थनाओं तक ही सिमित थी। अपने उन भ्राताश्री से ही मैंने पहली बार उस महान कलाकार के बारे में जाना और उनके इम्पोर्टेड टू-इन-वन पर उनका गाना बीट इट सुना जिसकी ध्वनि आज भी मेरे दिमाग में है। मैं न तो कोई विशेष संगीत प्रेमी हूँ और न ही मेरी रूचि इंग्लिश पॉप गानों में ज्यादा रही परन्तु मैं हमेशा अपने कॉलेज के दिनों में माइकल जैक्सन के एल्बम के कैसेट जरूर खरीदता, और जैसे ही मुझे कॉलेज के दौरान स्वतंत्र रूप से कमरा ले कर रहने का अवसर मिला तो मैंने उस कमरे की बालकनी के दरवाजे पर अपने अग्रज जैसा ही माइकल का आदमकद पोस्टर लगाया , जिसके कारण मेरी मित्र मंडली में मेरे घर की एक अलग चर्चा कई दिनों तक हुई।
कॉलेज के दौरान ही हमारे शहर में केबल टी.वि के माध्यम से ऍम टी.वि का आगाज़ हुआ और मुझे उनके विडियो देखने का सौभाग्य हुआ। परन्तु न जाने कब जीवन की भाग दौड़ में माइकल का संगीत पीछे छूट गया और केबल पर आने वाले म्यूजिक चैनल्स का देशीकरण होने से इंग्लिश पॉप संगीत का आकर्षण भी छूट गया। परन्तु इस महान मनोरंजन करता की मृत्यु ने मेरे मन में पुनः उनकी याद ताज़ा कर दी और मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ की उनकी आत्मा को शान्ति मिले।
Tuesday, June 23, 2009
जींस पहनने से तो ग़ज़ब हो जाएगा .
मित्रों
पिछले कुछ दिनों से अखबारों और टी.वीख़बरों में उत्तर प्रदेश के कुछ कॉलेज में लड़कियों के जींस पहनने पर लगी पाबन्दी की खबरें सुर्खियों में हैं । पहले तो मैं समझता हूँ कि इन कॉलेजों के प्राचार्यों को पहले शिक्षा का स्तर सुधारने पर ध्यान देना चाहिए और इस प्रकार के फालतू विषयों को उठा कर के सरकारी अनुदान प्राप्त विद्यालयों कि दुर्दशा पर से लोगों का ध्यान हट्टाने के लिए हैं।
दूसरी ओर मैं समझता हूँ कि जिन स्टूडेंट्स और लड़कियों ने इसका विरोध किया वोह भी उतना हे बेतुका है । मुझे समझ में नहीं आता है कि यदि चंद घंटों के लिए वो सलवार कमीज जैसी ड्रेस पहन लेंगी तो कोई प्रलय नहीं आएगी। मुझे नहीं लगता कि किसी भी महाविद्यालय कि श्रेष्ठ छात्राओं को इस विषय पर कोई एइतराज़ होगा ।
क्या जींस पहनना और बदन दिखाना ही नारी शशक्तिकरण का प्रतीक है?
बस सार यही है कि हम लोग फालतू विषयों पर अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करें। हमारे देश के युवा वर्ग और ख़ास कर इस देश कि होनहार युवतियों को अपनी शक्ति सृजन और रचनात्काक कार्यों में नष्ट करनी चाहिए। इंदिरा गाँधी , किरण बेदी, इंदिरा नूयी , मीरा कुमार ,सरोजिनी नायडू ,किरण मजुमदार शौ, ममता बनर्जी, लता मंगेशकर, अरुंधती रोय एकता कपूर इत्यादि अनगिनत भारतीय महिलाओं को अपनी प्रतिभा दर्शाने के लिए किसी विशेष ड्रेस कि आवश्यकता नहीं पड़ी। मेरा यही कहना है हम जो चाहें वोः पहने परन्तु यदि हमें अपने स्कूल या कॉलेज में चाहें युवक हों या युवतियां कुछ समय के लिए कोई पाबन्दी है इसमें कोई हर्ज़ नहीं है यह हमारी प्रतिभा कीराह में रोडा नहीं है.
पिछले कुछ दिनों से अखबारों और टी.वीख़बरों में उत्तर प्रदेश के कुछ कॉलेज में लड़कियों के जींस पहनने पर लगी पाबन्दी की खबरें सुर्खियों में हैं । पहले तो मैं समझता हूँ कि इन कॉलेजों के प्राचार्यों को पहले शिक्षा का स्तर सुधारने पर ध्यान देना चाहिए और इस प्रकार के फालतू विषयों को उठा कर के सरकारी अनुदान प्राप्त विद्यालयों कि दुर्दशा पर से लोगों का ध्यान हट्टाने के लिए हैं।
दूसरी ओर मैं समझता हूँ कि जिन स्टूडेंट्स और लड़कियों ने इसका विरोध किया वोह भी उतना हे बेतुका है । मुझे समझ में नहीं आता है कि यदि चंद घंटों के लिए वो सलवार कमीज जैसी ड्रेस पहन लेंगी तो कोई प्रलय नहीं आएगी। मुझे नहीं लगता कि किसी भी महाविद्यालय कि श्रेष्ठ छात्राओं को इस विषय पर कोई एइतराज़ होगा ।
क्या जींस पहनना और बदन दिखाना ही नारी शशक्तिकरण का प्रतीक है?
बस सार यही है कि हम लोग फालतू विषयों पर अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करें। हमारे देश के युवा वर्ग और ख़ास कर इस देश कि होनहार युवतियों को अपनी शक्ति सृजन और रचनात्काक कार्यों में नष्ट करनी चाहिए। इंदिरा गाँधी , किरण बेदी, इंदिरा नूयी , मीरा कुमार ,सरोजिनी नायडू ,किरण मजुमदार शौ, ममता बनर्जी, लता मंगेशकर, अरुंधती रोय एकता कपूर इत्यादि अनगिनत भारतीय महिलाओं को अपनी प्रतिभा दर्शाने के लिए किसी विशेष ड्रेस कि आवश्यकता नहीं पड़ी। मेरा यही कहना है हम जो चाहें वोः पहने परन्तु यदि हमें अपने स्कूल या कॉलेज में चाहें युवक हों या युवतियां कुछ समय के लिए कोई पाबन्दी है इसमें कोई हर्ज़ नहीं है यह हमारी प्रतिभा कीराह में रोडा नहीं है.
Tuesday, May 26, 2009
मेरा भारत महान हिंसा फैलाओ यहाँ
दोस्तों पिछले दो दिनों में पंजाब में हुई हिंसक घटनाओं ने पुनः मेरे दिल को झकझोर दिया है , कुछ इसी प्रकार की निराशा और कुंठा मेरे मन में पिछले वर्ष राजस्था में हुए गुर्जर आन्दोलन के दौरान हुई बे-रोकटोक हिंसा होने पर हुई थी।
क्या हमारे मुल्क में भयमुक्त समाज का मतलब अब इस प्रकार हो गया है- "किसी को भी मारो हिंसा का नंगा नाच सड़कों और सार्वजनिक जगहों पर दिखाओ राष्ट्र की संपत्ति को तोड़ो नष्ट करो और फिर उस वीरता के लिए सरकार से मुआवजा मांगो।"
इस सब में तो बेचारा निर्दोष और लाचार सभ्य और कानून का पालन करने वाला नागरिक पिस जाता है और दिन बा दिन गुंडों और असभ्य समाज के द्वारा उसे ठिकारें ही मिलती हैं।
क्या हमारा देश एक ऐसे मुल्क में तब्दील हो गया है जहाँ कुच्छ भी करने की छूट है ? या फिर कहिये की कानून का राज ख़तम हो गया है, या फिर यूँ कहिये सरकार या उसे चलाने वाले नेताओं में काननों का राज कायम करने की हिम्मत नहीं है ?
क्या हमारे देश में किसी भी दंड की कोई भी सज़ा नहीं यहाँ कुछ भी करो और आप बेरोकटोक घूम सकता हैं सोचिये सोचिये और पुनः सोचिये........
क्या हमारे मुल्क में भयमुक्त समाज का मतलब अब इस प्रकार हो गया है- "किसी को भी मारो हिंसा का नंगा नाच सड़कों और सार्वजनिक जगहों पर दिखाओ राष्ट्र की संपत्ति को तोड़ो नष्ट करो और फिर उस वीरता के लिए सरकार से मुआवजा मांगो।"
इस सब में तो बेचारा निर्दोष और लाचार सभ्य और कानून का पालन करने वाला नागरिक पिस जाता है और दिन बा दिन गुंडों और असभ्य समाज के द्वारा उसे ठिकारें ही मिलती हैं।
क्या हमारा देश एक ऐसे मुल्क में तब्दील हो गया है जहाँ कुच्छ भी करने की छूट है ? या फिर कहिये की कानून का राज ख़तम हो गया है, या फिर यूँ कहिये सरकार या उसे चलाने वाले नेताओं में काननों का राज कायम करने की हिम्मत नहीं है ?
क्या हमारे देश में किसी भी दंड की कोई भी सज़ा नहीं यहाँ कुछ भी करो और आप बेरोकटोक घूम सकता हैं सोचिये सोचिये और पुनः सोचिये........
Sunday, May 3, 2009
फतेहपुर सीकरी लोकसभा क्षेत्र से राज बब्बर को वोट दें
दोस्तों
मैं उत्तर प्रदेश की फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी राज बब्बर को वोट देने की अपील करता हूँ । मुझे उनसे कोई व्यक्तिगत लगाव तो नहीं है परन्तु इस सीट का हर प्रत्याशी जातिवाद का सहारा ले कर चुनाव की नैय्या पार लगाना चाहते हैं। और राज बब्बर की जीत जातिवादी राजनीती के मुंहपर तमाचा है। क्योंकि उनमें कई बुराइयां हो सकती हैं परन्तु कम से कम एक संसद तो जातिवाद की गन्दी राजनीती नहीं करेगा।
मैं उत्तर प्रदेश की फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी राज बब्बर को वोट देने की अपील करता हूँ । मुझे उनसे कोई व्यक्तिगत लगाव तो नहीं है परन्तु इस सीट का हर प्रत्याशी जातिवाद का सहारा ले कर चुनाव की नैय्या पार लगाना चाहते हैं। और राज बब्बर की जीत जातिवादी राजनीती के मुंहपर तमाचा है। क्योंकि उनमें कई बुराइयां हो सकती हैं परन्तु कम से कम एक संसद तो जातिवाद की गन्दी राजनीती नहीं करेगा।
Saturday, April 11, 2009
जरनैल सिंह का जूता इसकी जढ़ कहाँ
दोस्तों
आज काफ़ी दिनों बाद फिर मैं अपनी भडास निकाल रहा हूँ
मित्रों जरनैल द्वारा जो जूता पि चिदम्बरम पर फेंका गया वोह मेरी नज़र मैं निरंतर हे ग़लत है क्योंकि अगर वोह कांगेरस या उसके नेताओं का विरोध करते हैं तो उनको कम से कम एक जूता उन अकाली नेताओं पर भी फेंकना चाहिए जिन्होंने पंजाब के आतंकवाद के दौर में खुल कर आतंकवाद का समर्थन किया और जिसकी वजह से हजारों बेगुनाहों की भी जान गई ।
अथ: मेरा पूर्ण विश्वास है की उनकी यह कार्यवाही कहीं न कहीं किसी न किसी रूप से इस देश की गन्दी राजनीती से जुड़ी है.
आज काफ़ी दिनों बाद फिर मैं अपनी भडास निकाल रहा हूँ
मित्रों जरनैल द्वारा जो जूता पि चिदम्बरम पर फेंका गया वोह मेरी नज़र मैं निरंतर हे ग़लत है क्योंकि अगर वोह कांगेरस या उसके नेताओं का विरोध करते हैं तो उनको कम से कम एक जूता उन अकाली नेताओं पर भी फेंकना चाहिए जिन्होंने पंजाब के आतंकवाद के दौर में खुल कर आतंकवाद का समर्थन किया और जिसकी वजह से हजारों बेगुनाहों की भी जान गई ।
अथ: मेरा पूर्ण विश्वास है की उनकी यह कार्यवाही कहीं न कहीं किसी न किसी रूप से इस देश की गन्दी राजनीती से जुड़ी है.
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