Tuesday, October 7, 2008

लोकतंत्र बदल गया भीड़तंत्र

दोस्तों
नमस्कार
पिचले कुछ दिनों से मुझे एक बात बहुत सताती है की क्या आजादी के ६० साल बाद क्या हमारा लोकतंत्र सही दिशा में जा रहा है । दोस्तों लोकतंत्र की सबसे बड़ी खासियत थी या कहिये की है की इसमें साधारण से साधारण व्यक्ति की भी आवाज बुलंद है और किसी भी विषय पर किसी भी मुद्दे का निराकरण गुन और दोष के आधार पर होगा।
परन्तु आज देखने को लगता है किजो भीड़ कहे या करे वाही सही है । जिसके साथ भीड़ है वाही सही है। जाहिर है कि शिक्षित संस्कारवान लोगों कि भीड़ तो कभी जुटेगी हे नहीं । अतः जब भी कोई भी भीड़ इकट्ठी होगी तो वोह अशिक्षित या कम शिक्षित व उन लोगों कि इकट्ठी होगी जो कि ताक़त और शोर से अपनी बात या अपने कार्य को सही साबित करते हैं।

3 comments:

प्रदीप मानोरिया said...

लोकतंत्र तो डूब रहा भीषण भ्रष्टाचार
अब चुनाव की सफलता का मातृ यही आधार
यह आलेख आपकी संवेदनशीलता को उजागर करता है
सुंदर प्रस्तुति से तारुफ़ हुआ आपका बहुत स्वागत है
मेरे ब्लॉग पर आप पधारें ऐसी चाहत है

प्रकाश गोविंद said...

सही कहा आपने ! आपके अंतर्मन की बात समझ गया !
लोकतंत्र यानी डेमोक्रेसी यानी दे मोये कुर्सी
समझ गए न आप भी ?
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं !
लिखते रहिये !
कभी टाइम मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी आईये :
aajkiaawaaz.blogspot.com

हाँ एक और बात ...... कृपया वर्ड वैरिफिकेशन की प्रक्रिया हटा दें ! इस से टिप्पणी देने में अनावश्यक परेशानी होती है !

अभिषेक मिश्र said...

asahi kaha aapne. Swagat.