मित्रों,
पिछले दिनों हम सभी ने बुश पर इराक की उनकी अलविदा यात्रा के दौरान उन पर हुए जूते के हमले के बारे में देखा पढा या सुना तो होगा ही । प्रथम दृष्टया तो यह घटना एक हास्यास्पद सी लगती है और अमेरिकी राष्ट्रपति ने भी यह कहकर कि मुझे और कुछ तो नहीं मालुम परन्तु वोह जूता १० नम्बर का था" इस घटना को एक नॉन-सीरियस रूप देना चाहा था। और निश्चित रूप से जिन्होंने इसे टी.वी पर देखा है उन्हें भी इसे देख कर हँसी ज़रूर आई होगी।
परन्तु गौरतलब यह है कि इस घटना का दूसरा पहलू क्या है?
क्या जॉर्ज बुश वाकई इस व्यवहार के हक़दार थे या नहीं ?
सबकी अपनी राय अलग अलग होगी पर मेरा विचार यह है कि iraqi पत्रकार द्वारा बुश पर फेंके गए जूतों का कारण एक आम इराकी के मन में पनप रही हताशा है। यहाँ पर उस व्यक्ति द्वारा कहे गए दोनों वाक्य महत्वपूर्ण हैं पहला जूता फेंकते समय उसने कहा कि यह मिस्टर बुश अप्पको अलविदा के लिए और दूसरा फेंके समय उसने कहा कि यह इराक कि विधवाओं और अनाथ बच्चों कि तरफ़ से।
देखा जाए तो आज अमेरिका इराक में लोकतंत्र बहाली के नाम पर एक प्रकार कि सैनिक तानाशाही ही चला रहा है , अमेरिका के लिए सिर्फ़ उसके आर्थिक हित और इस मामले में अमेरिकी राष्ट्रपति कि एक निजी खुंदक, जिद या दुश्मनी भी दिखती है। एक आम इराकी आज भी उसी हाल में है जो कि वोह सद्दाम हु सेन के समय में था । और तो और अब उसे गैर मुल्की लोगों के हाथ कि कठपुतली बनना पड़ रहा है।
देखिये इराकी द्वारा प्केंका गया जूता अमेरिकी राष्ट्रपति को तो नहीं लगा परन्तु पीछे रखे अमेरिक झंडे में तो जा कर लग ही गया। यह इराक के लोगों के लिए एक प्रतीकात्मक बदला तो ज़रूर है। और जॉर्ज बुश कि उन नीतियों पर एक हमला है जो कि अमेरिकी जनता को भी रास नहीं आती और परिणामस्वरूप वहाँ कि जनता ने अभी हुए चुनावों में उनकी पार्टी को नकार कर डेमोक्रेटिक बराक ओबामा कि विजय दिलाई है ।
No comments:
Post a Comment