Thursday, April 8, 2010

माओवादी हिंसा का वीभत्स रूप

मित्रों ,

सर्वप्रथम मैं पिछले दिनों माओवादियों के हाथों शहीद हुए जवानों को हार्दिक श्रधांजलि दूंगा । अब मुझे लगता है कि नक्सली हिंसा काबू से बाहर हो रही है, हमारी प्रांतीय सरकारों कि उदासीनता ने इस असुर को भस्मासुर बना दिया था। यद्यपि मुझे लगता है कि शायद पहली बार पीचिदंबरम के नेतृत्व में भारत सरकार और विशेष कर गृह मंत्रालय इस समस्या से लड़ने को सक्रिय हुआ है। मेरे विचार से सरकार को खुली चुनौती स्वीकार करते हुए माओवादियों पर युद्ध बोल देना चाहिए नहीं तो यह समस्या हमारे देश को आगे चल कर न जाने कितने टुकड़ों में विभाजित करवा देगी।

साथ हे दूसरी ओरे मुझे मीडिया खासकर टी वी चैनलों से भारी शिकायत है , जितना वक़्त शोइअब सान्या के विवाह की खबर पर दिया गया शायद उसका आधा वक़्त भी इस माओवादी हिंसा को नहीं दिया गया। सबसे दुखद बात तो यह है की बहुत से टी वी पत्रकार अपनी रिपोर्ट्स में अक्सर नक्सली और माओवादियों के प्रति सहानुभूति दर्शाते रहते हैं , मेरे ख़याल से यह तो गलत हो रहा है , मैं मानता हूँ की सरकारी मशीनरी और पोलिसे बहुत भ्रष्ट है और अपने कई काम भी ठीक से नहीं कर सकती हैं , परन्तु हमारे देश की लोकतान्त्रिक प्रक्रिया करीब करीब बेदाग़ रही है। माओवादियों या नक्सलियों को मुख्या धारा में आकर जनता के हितों के लिए लड़ना चाहिए और भ्रष्ट नेताओं को हराना चाहिए ; जो की भ्रष्टाचार की असली जड़ हैं । परन्तु हिंसा निंदनीय है.

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